भारत में निजी क्षेत्र की नौकरियों का हिस्सा बढ़ता जा रहा पर सरकारी नौकरी आज भी लोगों की बनी हुई है पहली पसंद, जानिए क्यों? Latest Jobs in Hindi
भारत में निजी क्षेत्र के तेजी से विकास के बावजूद सार्वजनिक क्षेत्र की नौकरी लोगों की पहली पसंद है। यह रिपोर्ट बताती है कि कैसे मैन्युफैक्चरिंग और सर्विस के क्षेत्र में आर्थिक विस्तार के बावजूद कोई भी सार्वजनिक क्षेत्रों के रोजगार की जगह नहीं ले पाया है....।
1- सामाजिक सुरक्षा का लाभ भी मिलता है।
2020 में सार्वजनिक क्षेत्र के चार वेतनभोगी कर्मचारियों में से तीन भविष्य निधि, ग्रेच्युटी और स्वास्थ्य बीमा सहित कम से कम एक प्रकार के सामाजिक सुरक्षा लाभ ले रहे थे। वास्तव में, लगभग 66% रेलवे और 42% सार्वजनिक क्षेत्र के कर्मचारियों को तीनों लाभ प्राप्त हुए। इसकी तुलना निजी क्षेत्र में वेतनभोगी कर्मचारियों से करें तो मैन्युफैक्चरिंग और सेवाओं में, केवल 14-18% वेतनभोगी श्रमिकों को तीनों लाभ प्राप्त हुए और 40% ने उनमें से कम से कम एक हासिल किया है। तो इसमें कोई आश्चर्य की बात नहीं है कि अच्छी नौकरियों के लिए देश के अधिकांश लोग सार्वजनिक क्षेत्र में ही जाना चाहते हैं।
2- वंचित समुदायों के लिए प्रमुख नियोक्ता
सामाजिक समानता को आगे बढ़ाने में सार्वजनिक क्षेत्र की काफी भूमिका है। स्वतंत्रता के बाद के भारत में पिछड़े समुदायों के लिए आरक्षण की नीति लागू की गई। इसका सकारात्मक प्रभाव यह हुआ कि कार्यबल में उनकी हिस्सेदारी बढ़ गई। 1999 में अनुसूचित जाति के लगभग 11% लोग काम कर रहे थे। लेकिन लोक प्रशासन में उनकी भागीदारी 6% थी। इसका अर्थ है कि अनुसूचित जाति का प्रतिनिधित्व सूचकांक 1.5 था।
3 - रोजगार में सार्वजनिक क्षेत्र की घटती हिस्सेदारी
वर्ष 1999 में रेलवे, लोक प्रशासन और रक्षा सार्वजनिक क्षेत्र के तीन प्रमुख नियोक्ता थे। सभी वेतनभोगी नौकरियों में इन तीन क्षेत्रों का लगभग एक तिहाई हिस्सा था। हालांकि, इसमें लगातार गिरावट आई है। 2019-20 तक अर्थव्यवस्था में वेतनभोगी नौकरियों का हिस्सा केवल 11% ही रह गया है। हालांकि, निजी क्षेत्र के बढ़ते दखल के बावजूद सार्वजनिक क्षेत्र की नौकरी में सुरक्षा व लाभ ज्यादा है।