मुर्गीपालन लाभकारी व्यवसाय क्यों और कैसे? क्योंकि
मुर्गीपालन भूमिहीन, सीमांत किसानों तथा बेरोजगार
नौजवानों को स्वरोजगार उपलब्ध कराने का एक प्रभावी साधन है।
मुर्गीपालन लगातार 8-10 प्रतिशत वार्षिक वृद्धि की दर से बढ़ रहा है जबकि दूध व्यवसाय की वार्षिक वृद्धि दर 4-5 प्रतिशत अनुमानित है।
कुछ प्रबुद्ध शाकाहारियों द्वारा अनिषेचित अंडे को शाकाहार के रूप में स्वीकार किए जाने से अंडे की मांग में राष्ट्रीय स्तर पर वृद्धि हुई है।इस व्यवसाय में कम कीमत पर अधिक खाद्य पदार्थ प्राप्त होता है।
उदाहरण के रूप में ब्रॉयलर मुर्गे का 1 किग्रा शरीर भार 2 किग्रा दाना मिश्रण खिलाकर प्राप्त किया जा सकता है। इसी प्रकार मुर्गी से 1 दर्जन अंडे पाने के लिए उसे सिर्फ 2.2 किग्रा दाना मिश्रण ही खिलाना जरूरी होता है।
मुर्गी की खाद्य परिवर्तन क्षमता गाय और सूअर की तुलना में भी बहुत बेहतर होती है। गाय 1 किग्रा खाद्य पदार्थ उत्पादन के लिए 5 किग्रा दाना मिश्रण तथा सूअर 1 किग्रा मांस उत्पादन के लिए 3 किग्रा दाना मिश्रण का उपयोग करता है जबकि मुर्गी सिर्फ 2 किग्रा दाना खाकर 1 किग्रा शरीर भार पा लेती है। मुर्गी के मांस के विक्रय में किसी भी प्रकार की धार्मिक मान्यता बाधक नहीं बनती है, साथ ही साथ मुर्गी के मांस
तथा अंडे के लिए अपने प्रदेश तथा पूरे देश में भली-भांति विकसित बाजार मौजूद है।
मुर्गी की बीट तथा बिछावन से बनाई गई खाद में गाय के गोबर की खाद की तुलना में अधिक मात्रा में नत्रजन, फॉस्फोरस तथा पोटाश पाया जाने के कारण इसकी कार्बनिक खेती के लिए बहुत मांग रहती है।
मुर्गी की सुखाई हुई बीट को निर्जमीकृत करने के बाद पशु आहार बनाने में भी प्रयोग किया जाता है। मुर्गी के अंडे के अंड पीत को वीर्य तानुकारक बनाने में भी प्रयोग किया जाता है।
मुर्गी का व्यवसाय एक ऐसा अनूठा धंधा है जिसमें बहुत ही जल्दी आपकी पूंजी बढ़ोतरी के साथ आपको वापस मिल जाती है। ब्रॉयलर मुर्गे से सिर्फ 4 सप्ताह में आप एक किग्रा वजन पा सकते हैं।
इसी प्रकार मुर्गी से अंडा उत्पादन प्राप्त करने के लिए लगभग 4.5 महीने का समय पर्याप्त होता है। इस प्रकार पूंजी को लाभ सहित वापस पाने के बाद उसे फिर से इस व्यवसाय में लगाने से अगली बार और अधिक पूंजीगत लाभ की प्राप्ति संभव हो पाती है।
मुर्गीपालन में तुलनात्मक रूप से कम पूंजी, कम स्थान तथा कम श्रमशक्ति की जरूरत पड़ती है।
मुर्गी के व्यवसाय से सारे साल नियमित रूप से आय
प्राप्ति संभव है। मुर्गीपालन के धंधे का विस्तार भी बहुत आसान है, क्योंकि एक अच्छी नस्ल की उन्नत मुर्गी सालभर में 250 से अधिक निषेचित अंडे देने की क्षमता रखती है।
यदि वैज्ञानिक तरीके अपनाते हुए तथा नियमित रूप से टीकाकरण करने के साथ मुर्गीपालन किया जाए तो इस व्यवसाय में जोखिम भी बहुत कम रहता है।
मुर्गीपालन को स्वरोजगार के रूप में बेरोजगार नौजवान, गृहिणी तथा सेवानिवृत्त कर्मचारी भी सहजता से अपनाकर एक अतिरिक्त आय का स्रोत बना सकते हैं।
मुर्गीपालन के लाभकारी व्यवसाय के लिए ध्यान देने योग्य बातें :
●ब्रॉयलर के चूजे की खरीदारी में ध्यान दें कि जो चूजे आप खरीद रहे हैं उनका वजन 6 सप्ताह में 3 किग्रा दाने खाने के बाद कम से कम 1.5 किग्रा हो जाए तथा मृत्यु दर 3 प्रतिशत से अधिक न हो।
●यदि अंडे वाली मुर्गी अर्थात लेयर के चूजे हों तो उन्हें हैचरी से ही रानीखेत एफ का टीका तथा पहले दिन ही मेरेक्स का टीका लगा होना चाहिए।
●व्हाइट लेग हॉर्न के मादा चूजे 8 सप्ताह में लगभग 1/2 किग्रा भार के हो जाने चाहिए।
●चूजे की खरीद के लिए सदैव अच्छी तथा प्रमाणित हैचरी का चूजा खरीदना ही अच्छा होता है। चूजे के आते ही उसे बक्से समेत कमरे के अंदर ले जाएं,
●जहां ब्रूडर रखा हो। फिर बक्से का ढक्कन खोल दें। अब 1-1 करके सारे चूजों को एलेक्ट्रल एनर्जी (Electral Energy) मिला पानी पिलाकर ब्रूडर के नीच छोड़ते जाएं। बक्से में अगर बीमार चूजा है तो उसे हटा दें।
●चूजों के जीवन के लिए पहला तथा दूसरा सप्ताह संकट का होता है इसलिए इन दिनों में अधिक देखभाल की आवश्यकता होती है।
●अच्छी देखभाल से और पहले 7 दिनों तक नेऑक्सीविटा फोर्टे (Nioxyvita Forte) और एमिनो पॉवर (Amino Power) देने से मृत्यु दर कम की जा सकती है और बेहतर वजन और स्वास्थ्य पाया जा सकता है।
●पहले सप्ताह में ब्रूडर में तापमान 90 डि. F होना चाहिए। प्रत्येक सप्ताह 5 डि. F कम करते हुए इसे 70 डि. F से नीचे ले जाना चाहिए।
●यदि चूजे ब्रूडर के नीचे बल्ब के नजदीक एकसाथ जमा हो जाएं तो समझना चाहिए के ब्रूडर में तापमान कम है। तापमान बढ़ाने के लिए अतिरिक्त बल्ब का इंतजाम करें या जो बल्ब ब्रूडर में लगा है, उसको थोड़ा नीचे करके देखें।
●यदि चूजे बल्ब से काफी दूर किनारे में जाकर जमा हो तो समझना चाहिए ब्रूडर में तापमान ज्यादा है, ऐसी स्थिति में तापमान कम करें।
●इसके लिए बल्ब को ऊपर खींचे या बल्ब की संख्या को कम करें। उपयुक्त गरमी मिलने पर चूजे ब्रूडर के चारों तरफ फैल जाएंगे।
●वास्तव में चूजों के चाल-चलन पर नजर रख और समझकर ही तापमान को नियंत्रित करें।
●पहले दिन जो पानी पीने के लिए चूजे को दें, उसमें नेऑक्सीविटा फोर्टे (Nioxyvita Forte) मिलाएं। इसके अलावा ग्रोविट पॉवर (Growvit Power), ग्रो बी-प्लेक्स (Grow B-Plex), ग्रोलिव फोर्ट (Growlive
Forte), ग्रो ई-सेल (Grow E-Sel) नियमित रूप से चूजों के उम्र के अनुसार और दवा देने की दिन, अवधि और मात्रा के अनुसार दे दें।
●वैसे बी-कॉम्प्लेक्स या कैल्सियमयुक्त दवा 10 मिली प्रति 100 मुर्गियों के हिसाब से हमेशा दे सकते हैं। अगर ये दवाएं नियमित रूप से देते हैं तो प्रति मुर्गी कम से कम 200 ग्राम अतिरिक्त वजन, बेहतर एफसीआर, नगण्य मृत्यु दर और बेहतर स्वस्थ मुर्गियों का होगा और अंततोगत्वा मुर्गीपालन में आपको 25% अतिरिक्त मुनाफा होगा।
●जब चूजे पानी पी लें तो उसके 5-6 घंटे बाद अखबार पर मकई का दर्रा छींट दें, चूजे इसे खाना शुरू कर देंगे। इस दर्रे को 12 घंटे तक खाने के लिए देना चाहिए।
● तीसरे दिन से फीडर में प्री-स्टार्टर दाना दें। दाना फीडर में देने के साथ-साथ अखबार पर भी छींटें। प्री-स्टार्टर दाना 7 दिनों तक दें।
●4थे या 5वें दिन से दाना केवल फीडर में ही दें। अखबार पर न छींटें। 8वें रोज से 28 दिन तक ब्रॉयलर को स्टार्टर दाना दें। 29 से 42 दिन या बेचने तक
फिनिशर दाना खिलाएं। अंडा देने वाले बच्चों को अच्छा स्टार्टर दाना दें।
●दाना और दवाएं कभी भी बेकार न होने दें
दूसरे दिन से 5 दिन नेऑक्सीविटा फोर्टे (Nioxyvita Forte) आधा ग्राम प्रति लीटर पानी में मिलाकर दें ताकि चूजों को बीमारियों से बचाया जा सके।
शुरू के दिनों में बिछाली (लीटर) को रोजाना साफ करें। पानी का बर्तन रखने की जगह हमेशा बदलते रहें।
चूजों की अच्छी बढ़त के लिए स्वच्छ हवा का होना जरूरी है। रात में भी रोशनदान को पूरा न ढंकें, पर ध्यान दें कि चूजों को सीधी हवा नहीं लगानी चाहिए।
●बिछावन सदा सूखी और भुरभुरी रहे। बुरादे के सीलन
वाले या गीले हिस्से को तुरंत हटा दें। 5वें या 6ठे दिन ब्रॉयलर चूजों को रानीखेत एफ का टीका आंख तथा नाक में 1-1 बूंद दें। 14वें या 15वें दिन गम्बोरो का टीका, आईबीडी आंख तथा नाक में 1-1 बूंद दें।
●मरे हुए चूजे को कमरे से तुरंत बाहर निकाल दें। नजदीक के अस्पताल या पशु चिकित्सक से पोस्टमॉर्टम करा लें।
पोस्टमॉर्टम कराने से यह मालूम हो जाएगा कि मौत किस बीमारी या कारण से हई है। अंडे वाली मुर्गियों के पालने अथवा रियरिंग का समय ब्रूडिंग समाप्त होने के बाद 9-20 सप्ताह तक बहुत खास होता है।
8 सप्ताह की उम्र पर मुर्गे-मुर्गियों के लिंग की जांच कर के गलती से आ गए नर मुर्गों को अलग कर देना चाहिए।
मुर्गियों को इस समय प्रति मुर्गी 1.5-2 वर्गफुट स्थान
की जरूरत होती है। इसी प्रकार इनके पानी पीने और दाना खाने वाले बर्तनों का आकार भी बढ़ जाता है।
9-20 सप्ताह की उम्र वाली मुर्गियों को रात में बिलकुल रोशनी नहीं देनी चाहिए, पर रोशनी को धीरे-धीरे कम करते हुए 1 हफ्ते में बंद करना चाहिए।
● व्हाइट लेग हॉर्न मुर्गियों का 1 चूजा 1 दिन से 20 सप्ताह की अवधि में 7.5-8 किग्रा दाना खाता है।
●ब्रूडिंग और रियरिंग के बाद मुर्गियां 20 सप्ताह से 72 हफ्तों पर अंडे पर आ जाती हैं। इस समय प्रति व्हाइट लेग हॉर्न मुर्गी 2-2.5 वर्गफुट स्थान की जरूरत होती है। इसी प्रकार उनकी अन्य जरूरतें भी अब बढ़ जाती हैं।
●इस समय से अब पुन: रोशनी की मात्रा धीरे-धीरे 7-10 दिनों में वापस ले आएं। यह ध्यान दें कि लाइट निश्चित समय पर ही जलाएं या बुझाएं।
●अंडों को निश्चित समय पर ही दिन में 3-4 बार इकट्ठा करें। अंडा देने की 1 वर्ष की अवधि के दौरान मृत्यु दर हर हाल में 15% से कम ही रहनी चाहिए।
●मुर्गीघर के दरवाजे पर एक बर्तन या नांद में फिनाइल का पानी रखें। मुर्गीघर में जाते या आते समय पैर धो लें। यह पानी रोज बदल दें।